आज मंगलबार बिहानै हनुमान चालिसाको पाठ गरी दिन मंगल बनाउनुहोस्
श्रीगुरु चरण् सरोजरज, निजमनमुकुर सुधार ।
बरणौ रघुबर बिमल यश, जो दायक फलचार ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जै कपीस तिहुँलोक उजागर ॥
रामदूत अतुलित बलधामा ।
अंजनि-पुत्र पवन-सुत नामा ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरण बिराज सुबेशा ।
कानन कुंडल कुंचित केशा ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर-सुवन केशरी-नन्दन ।
तेज प्रताप महा जग-वंदन ॥
विद्यावान गुणी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
रामलषण सीता मन बसिया ॥
सूक्ष्म रूपधरि सियहिं दिखावा ।
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई ।
तुम मम प्रिय भरतहिसम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।
नारद शारद सहित अहीशा ॥
यम कुबेर दिगपाल जहाँते ।
कवि कोविद कहि सकैं कहाँते ॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
युग सहस्र योजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँधि गये अचरजनाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिन पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँकते काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥
नाशौ रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥
संकट से हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोइ लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
चारों युग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरे भजन रामको पावै ।
जन्म जन्म के दुख बिसरावै ॥
अन्त काल रघुपति पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
संकट हरै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा ॥
जै जै जै हनुमान गोसाई ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥
जोह शत बार पाठ कर जोई ।
छुटहि बन्दि महासुख होई ॥
जो यह पढै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥
पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
रामलषन सीता सहित,
हृदय बसहु सुरभूप ॥
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